काश कुछ और वक़्त रुक जाता मैं
याद काफ़ी अति हैं मुझे
और अब बस यादें ही रह गई हैं मेरे पास
खुल कर रो भी नहीं सकता मैं
आंसू पोछने वाला ही चला गया मुझे छोड़ के
दिल मानता नहीं हैं पर यही सचाई हैं
सचाई की अब तुम नहीं हो मेरे पास
सचाई की अब कुछ पहले जैसा नहीं रहेगा
सचाई जो मैं छाँ कर भी नहीं बदल सकता
अब जब भी हम सब साथ होंगे तो हमेशा रोने से शुरुआत हुआ करेगी
या शायद बैठे भी ना अब साथ में
कभी आदत ही नहीं थी ऐसे रहने की
अब मज़ाक़ किसका उड़ायेंगे
सब टूट चुका हैं और अब मेरा मन भी नहीं हैं जोड़ने का
एक लहर आई और सब छीन के ले गई
बस दुख के अलावा कुछ नहीं हैं अब
- आदित्य दुबे
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