बस यादें रह गई है अब,
पता ही नहीं चला कि कब समय निकल गया,
पता ही नहीं चला कि कब उन यादों को भूलने के लिए नींद की गोली लेनी पड गई,
अब तो शायद मैं अब इन यादों में ही हर वक़्त खोया रहूंगा,
बहुत सारी अधूरी सी ख्वाइश थी जो शायद अब कभी पूरी नहीं होंगी,
याद आते हैं वो दिन जब आपसे मिलकर एक अलग सी खुशी होती थी,
आंखें खुली हैं पर शायद कोमा में हूं वैसा लगता है अब,
दर्द बहुत हैं, घाव बहुत हैं,
आंखों में नमी हैं,
खुदको समझना अब मुश्किल होता है बहुत,
जिससे हम रोज बात करते थे,
अब शायद उनकी यादों के सहारे ही जीना है बस,
दिल में उलझन सी हैं,
आंखों में अंधेरा हैं,
ना में अपने आप को महसूस कर पा रहा हूं,
ना मुझे समझ आ रहा है कि में क्या कर रहा हूं,
बस इतना पता हैं अब शायद इन यादों के सहारे ही जीना है,
खालीपन सा हैं अंदर अब,
पर जीना तो होगा ना,
वक़्त बदलेगा, लोग बदलेंगे,
हालात भी बदलेंगे,
पर यादें वहीं रहेंगी,
और दर्द भी वहीं रहेगा....
- आदित्य दुबे
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