Kuch Adhoore Alfaaz


ना जिंदा था उस दिन,
ना मरा था उस दिन,
सांसें चल भी रही थी,
सांसें रुक भी रही थी,
पता नही उस दिन सीने में अलग सी उलझन थी,
बोलना बहुत कुछ था पर जुबान पर नही आरही थी,
रोने का बहुत मन था पर हिम्मत नहीं हो रही थी,
दर था सीने में अलग सा, पता नहीं क्या था,
पर उस दिन कुछ अलग था,
ऐसा लगा की शायद कोई अपना चला गया है,
ऐसा लगा की शायद मैं ज्यादा सोच रहा हूं,
पर उस दिन कुछ अलग था,
अंधेरे में बैठा था और रोशनी ढूंढ़ रहा था,
रोशनी ढूंढने के चक्कर में अंधेरे से प्यार हो गया,
अंधेरे ने सहारा दिया तो संभाल नही पाया और टूट गया,
हां उस दिन मैं रोया, हां उस दिन सीने में दर्द कम हुआ,
हां उस दिन मैं बहुत कमजोर दिख रहा था,
अक्सर जो दिखता है वैसा होता नहीं है, आज असलियत दिख रही थी,
में कल की चिंता कर रहा था और आज बेकार कर रहा था,
बोलना तो बहुत कुछ है पर आंसू रुक नहीं रहे हैं,
धुंधला सा दिख रहा है सब कुछ,
शायद आज बहुत सालों बाद में अपने लिए रोया,
पल भर के लिए ही सही आज अपने आप से प्यार हुआ,
जब अपने ही साथ छोड़ देते हैं तो हिम्मत भी टूट सी जाती हैं,
ना तो में किसी भीड़ में खोया हूं,
ना तो में किसी अनजान रास्ते पर खोया हूं,
में बस अपने अंदर ही खो गया हूं,
और शायद कभी ढूंढने की कोशिश भी नहीं करी,
ना मरने की हिम्मत हैं,
ना जीने की हिम्मत हैं,
अब तो बस दूसरो के लिए जीता हूं,
क्यूंकि अब मन नहीं हैं कुछ करने का,
अब मन नहीं करता है अपने आप को ढूंढने का,
क्यूंकि जब उम्मीदें ही चली जाती हैं तो कुछ अच्छा नही लगता है,
हां झूठा हूं में जो बोलता था HOPE KEEPS YOU ALIVE,
क्यूंकि जब अपने ही साथ छोड़ देते हैं तो कुछ नहीं बचता हैं,
स्याही की तरह हैं जिन्दगी,
उस पर पानी गिरा तो सब मिट जाता है,
शायद आज सीने में दर्द हल्का सा कम हुआ,
पर फिर भी अब अपने आप को ढूंढने का मन नहीं करता है,
ना जिंदा था उस दिन,
ना मरा था उस दिन...

-आदित्य दुबे

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